राजेन्द्र यादव ने ‘हंस’ (जून, 2012) ने सम्पादकीय ‘मेरी तेरी उसकी बात’ में पवित्र वचन उचारे कि उन्हें मन्दिरों के नाम पर आध्यात्मिक शौचालय हर जगह मिल जाते हैं जहाँ लोग अपने मानसिक विकारों, पापों, प्रतिशोधों और अपराधों की विष्ठा का विसर्जन करते हैं और अपने सपनों और आकांक्षाओं के लिए दुआ माँगते हैं। मन होता है कि इन सारे मन्दिरों और मठों पर ‘मानसिक सुलभ शौचालयों’ के बोर्ड लगा दिए जाएँ। सम्पादकीय पढ़कर राजेन्द्र जी के अनुयायियों, अनुगामियों, शिष्यों, भक्तों और चरणचुम्बकों - जिन्हें चाटुकार ब्रिगेड में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है - को करेन्टानुभूति हुई। ये लोग लात के साथ-साथ बात पकड़ने में भी पटु थे, इस सीमा तक कि बात को पकड़कर लटक तक जाते थे। इन लोगों ने कोर गु्रप की बैठक बुलाई जिसमें संयोजक ने आधार उद्गार यों व्यक्त किया, ‘‘आप सबने जून, 2012 का सम्पादकीय पढ़ा ही होगा, परमादरणीय यादव जी ने लिखा है कि मन्दिर आध्यात्मिक शौचालय हैं जहाँ लोग अपने मानसिक विकारों, पापों, प्रतिशोधों और अपराधों की विष्ठा का विसर्जन करते हैं। साथियो, विचारणीय बिन्दु यह है इस महान वचनामृत के परिपे्रक्ष्य में हम लोगों का क्या कर्तव्य बनता है?’’ एक व्यक्ति ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, ‘‘दोस्तो, यादव जी का कथन हमारे लिए ब्रह्मवाक्य है - ‘‘ब्रह्मवाक्यं जनार्दनः।’’ वह सम्पादकीय में मानसिक सुलभ शौचालय से बहुत प्रभावित नज़र आते हैं। जैसा कि आप सब जानते हैं, श्रद्धेय यादव जी में मानसिक विकारों, पापों, प्रतिशोधों और अपराधों की कमी नहीं है। कुछ के बारे में वह स्वयं गाहे-बगाहे ऐलान करते रहते हैं। महत्वपूर्ण प्रश्न है कि विष्ठा का वह स्वयं कहाँ विसर्जन करें?’’ कोर कमिटी के एक अन्य सदस्य ने अपना दृष्टिकोण रखा, ‘‘साथियो, यह पूज्य यादव जी से ही जुड़ा नहीं, हम लोगों के शिष्यत्व से जुड़ा, साहित्य, संस्कृति और विचार से भी जुड़ा मुद्दा है। पूज्य जी की विष्ठा का विसर्जन बहुत ज़रूरी है अन्यथा उन्हें कोष्ठबद्धता की शिकायत हो सकती है। अन्य शारीरिक विकार पैदा हो सकते हैं और जान पर बन आ सकती है।’’ सहमति का स्वर फूटा, ‘‘ठीक कह रहे हैं। श्रद्धेय यादव जी कुछ समय पहले गम्भीर बीमारी से उबरे हैं। उनके अमूल्य जीवन की रक्षा के लिए उपाय किए जाने ज़रूरी हैं, जल्दी किए जाने हैं।’’ एक सदस्य ने सुझाव दिया, ‘‘हिन्दुस्तान टाइम्स अपार्टमेन्ट्स के सामने फुटपाथ पर स्थित मन्दिर का उल्लेख सम्पादकश्री यादव जी ने किया है। उसी मन्दिर के बग़ल में सूर्योदयी संकल्प वाले यादव जी का भव्य मन्दिर बनवाया जाए जहाँ आते-जाते वह माथा टेका करें और बरसों से संचित अपने मानसिक विकारों, पापों, प्रतिशोधों और अपराधों की विष्ठा विसर्जित किया करें। इससे वह हल्का महसूस करेंगे, बीमारी का ख़तरा कम होगा।’’ कई आवाजें गूँजीं, ‘‘वाह, वाह ...! उम्दा सुझाव है ...! वल्लाह, क्या बात है ...!’’ शोर थमा, तो एक व्यक्ति ने टोका, ‘‘पर भाई साम्यवाद में तो धर्म को अफीम बताया गया है। साम्यवाद में विश्वास रखने वाले यादव जी और मन्दिर? अजीब नहीं लगेगा? यादव जी पाइप ज़रूर पीते हैं, पर अफीम नहीं खाते।’’ मन्दिर निर्माण का सुझाव देने वाले व्यक्ति ने कहा, ‘‘जैसे भारतीय चीज़ों का विदेशीकरण और विदेशी चीज़ों का भारतीयकरण होता है, वैसे ही साम्यवाद का भारतीयकरण क्यों नहीं हो सकता? यादव जी हमारे लिए पारस पत्थर सरीखे हैं, उन पर किया गया मन्दिर निर्माण धार्मिक कृत्य न होकर जनवादी कृत्य ही होगा। फिर, यह भी सोचिए, विष ही विष की दवा होती है, काँटा काँटे से ही निकाला जाता है। राजेन्द्रवाद के प्रचार-प्रसार के लिए और धर्मधुरन्धरों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने के लिए मन्दिर निर्माण बहुत ज़रूरी है।’’ लोगों ने ध्वनिमत से सहमति व्यक्त की। एक व्यक्ति ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘इससे देश के मन्दिरमार्गियों का दिमाग़ ठिकाने आ जाएगा। उन्हें पता चल जाएगा कि उनके देवताओं की तरह हमारे पास भी एक महान् आत्मा है। यह भी कि हम हर चीज़ में उन्हें टक्कर देने की क्षमता रखते हैं- ये ख़ामोशमिजाज़ी तुम्हें जीने नहीं देगी, इस दौर में जीना है तो कोहराम मचा दो। मन्दिर से यादव जी की स्मृति भी चिरस्थायी रहेगी।’’ एक व्यक्ति ने सम्पादकीय से संकेत ग्रहण करते हुए कहा, ‘‘मन्दिर का नाम रखा जाए - ’राजेन्द्र यादव मानसिक सुलभ शौचालय।’ मन्दिर के सामने नामसूचक बड़ा-सा साइनबोर्ड लगाया जाए जिसमें पाइप पीते, सिर को तिरछा किए राजेन्द्र जी का फोटो भी होगा। फोटो से स्पष्ट हो जाएगा कि यादव जी का असली मन्दिर यही है। लोग नक्कालों से सावधान हो जाएँगे।’’ ‘‘पर मन्दिर के लिए मूर्ति कहाँ से आएगी?’’ ‘‘वहाँ से तो नहीं ही जहाँ से देशी नेताओं की मूर्तियाँ बनवायी जाती हैं। यादव जी की मूर्ति विदेश से मँगायी जाएगी। रूस से मँगायी जाए, तो काफ़ी मँहगी पड़ेगी। समय भी ज़्यादा लगेगा। सैद्धांतिक तौर पर भी अब यह ठीक नहीं होगा। मूर्ति आएगी चीन से - काफी़ सस्ती होगी। नेपाल के रास्ते जल्दी और आसानी से आ जाएगी।’’ सदस्यों ने कोलाहल-ध्वनि से सहमति व्यक्त की। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कोहिमा तक फैली राजेन्द्र जी की चाटुकार बिग्रेड से चंदा वसूला गया और भव्य मन्दिर निर्मित किया गया। राजेन्द्र यादव घर से आते-जाते समय इस मन्दिर में आते और अपने मानसिक विकारों, पापों, प्रतिशोधों और अपराधों की विष्ठा विसर्जित कर हल्के होते और बहुरंगी सपनों और आकांक्षाओं के लिए दुआ माँगते। चाटुकार बिग्रेड के सदस्य भी मन्दिर आने लगे। वे भी अपने मानसिक विकारों, पापों, प्रतिशोधों और अपराधों की विष्ठा का विसर्जन करते, दुआ माँगते।
दामोदर दत्त दीक्षित 1/35, विश्वास खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ-226010 (उ0प्र0) मो0- 9415516721
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