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गुरुवार, 31 जुलाई 2008

नोटों के बण्डल

मंहगाई से त्रस्त, समस्याग्रस्त
एक किसान ने जैसे ही,
अपने सांसदों के हाथों में
नोटों के बण्डल देखे,
बड़ी हीन भावना से चिल्लाया-
देखो! देखो! भागवान!
संसद को कैसे नंगा किया
यह इंसान!
पास खड़ी पत्नी चिल्लाई
बड़ी नेकी बखानते हो!
गये इलेक्सेन में
तुम भी तो
एक जोड़ी धोती के लिए
अपने वोट बेचते हो!।

शम्भु चौधरी
FD-453, Salt Lake City, Kolkata-700106

4 टिप्‍पणियां:

  1. सादर अभिवादन शंभू जी
    मेरे ब्लॉग पे फोटो लगा होने से उसके देर से खुलने की बात मानकर कुछ दिन के लिए मैने उसे हटा दिया था
    आपकी बात वाजिब थी , पर अब मैने उसे एडिट कर उसका साइज़ काफ़ी छोटा कर डाला है , अब यथासंभव
    वो दिक्कत नहीं आएगी
    आपके प्रोफाइल से आपकी सक्रियता जानकार खुशी हुई
    और अच्छी कविता के लिए आपको बधाई
    ब्लॉग पर आते रहेंगे इसी उम्मीद के साथ
    डॉ.उदय मणि कौशिक
    http://mainsamayhun.blogspot.com

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  2. पास खड़ी पत्नी चिल्लाई
    बड़ी नेकी बखानते हो!
    गये इलेक्सेन में
    तुम भी तो
    एक जोड़ी धोती के लिए
    अपने वोट बेचते हो!।
    बहुत ही सुन्दर लिखा है। बहुत-बहुत स्वागत है आपका।

    जवाब देंहटाएं
  3. नए चिट्टे की बधाई, लिखते रहें, और हिन्दी ब्लॉग्गिंग को समृद्ध करते रहें...
    शुभकामनायें

    आपका मित्र
    सजीव सारथी

    जवाब देंहटाएं
  4. शम्भू जी,
    सादर-नमस्कार!
    आपकी कलम देखी और कलम की धार भी...
    बहुत अच्छा लगा...

    सुनीता शानू

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